Varn kise kehte hain ?
वर्ण विचार (Varn Vichar) और उच्चारण – भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है। इन वर्गों के संयोग से शब्दों का निर्माण होता है। ‘वर्ण’ शब्द का प्रयोग ध्वनि और ध्वनि-चिहन दोनों के लिए होता है, क्योंकि वर्ण ध्वनियों के उच्चरित और लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं। इन वर्गों के समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं।
उच्चारण की दृष्टि से हिंदी वर्णमाला को दो वर्गों में बाँटा गया है –
1. स्वर (vowel) 2. व्यंजन(Consonant)
1. स्वर (vowel) – जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है, उन्हें स्वर कहते हैं।
उच्चारण की दृष्टि से स्वर पूर्णतया स्वतंत्र हैं। व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर -सहायक होते हैं। हिंदी में स्वर इस प्रकार हैं-
अ आ इ ई उ ऊ (ऋ) ए ऐ ओ औ
‘ऋ’ का उच्चारण सामान्यतः ‘रि’ के रूप में व्यंजनवत् ही होता है। ‘आ’ आदि अन्य स्वरों के समान ‘ऋ’ की मात्रा (ृ) भी होती है, अतः उसे स्वरों में गिना जाता है। ‘ऋ’ का प्रयोग केवल तत्सम (संस्कृत) शब्दों में होता है; जैसे – ऋण, ऋषि, ऋतु।
देवनागरी वर्णमाला में अं, अः को स्वरों के साथ लिखा जाता है, पर वास्तव में ‘अं’ अनुस्वार (-) है और अः विसर्ग (:) है। स्वर के बाद ही इनका प्रयोग होता है; जैसे – अंक, इंगित, अतः, प्रातः, प्रायः। विसर्ग का प्रयोग हिंदी में प्रचलित संस्कृत शब्दों में ही होता है।
2. व्यंजन (Consonant) – हिंदी में व्यंजन इस प्रकार हैं
स्पर्श व्यंजन
कवर्ग | क ,ख ,ग ,घ ,ङः | ||||
चवर्ग | च छ ज झ ञ | ||||
टवर्ग | ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ | ||||
तवर्ग | त थ द ध न | ||||
पवर्ग | प फ ब भ म | ||||
अंतस्थ व्यंजन | य र ल व | ||||
ऊष्म व्यंजन | श ष स ह | ||||
संयुक्त व्यंजन | क्ष त्र ज्ञ श्र |
(क) ड़, ढ़ हिंदी के विकसित व्यंजन हैं। ये संस्कृत में नहीं थे।
(ख) ज़ फ़ ध्वनियाँ विदेशी (अरबी, फ़ारसी तथा अंग्रेज़ी) प्रभाव से हिंदीमें आ गई हैं।
(ग) हिंदी में ‘ङ’ और ‘ञ’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता।
उपर्युक्त सभी व्यंजनों में ‘अ’ स्वर मिला हुआ है। स्वर रहित व्यंजन हलंत ( ् ) के साथ लिखे जाते हैं; जैसे – क्, छ्, ढ्, द्-
(घ) क्ष, त्र, ज्ञ और श्र संयुक्त व्यंजन हैं, यथा क् + ष = क्ष, त् + र = त्र, ज् + अ = ज्ञ, श् + र = श्र
(ङ) हिंदी में ‘ज्ञ’ का उच्चारण प्रायः ‘ग्य’ के समान होता है।
मात्राएँ – व्यंजन के साथ स्वर जिस रूप में मिला होता है, उसे स्वर की मात्रा कहते हैं।
प्रत्ये स्वर की मात्रा नीचे दी जा रही है :-
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ |
‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती । ‘अ’ स्वर व्यंजन में ही मिला रहता है; जैसे – क = क् + अ, प = प् + अ
सभी स्वरों की मात्राएँ क्रम से क् के साथ नीचे दी जा रही हैं
क् + अ = क | क् + उ = कु | क् + ऐ = कै |
क् +आ = का | क् +ऊ =कू | क् + ओ = को |
क् + इ= कि | क् + ऋ = कृ | क् + औ = कौ |
क् + ई = की | क् + ए = के |
स्वरों के भेद
स्वर दो प्रकार के होते हैं –
1. ह्रस्व स्वर(Short Vowels )
2. दीर्घ स्वर(Long Vowels)
अ, इ, उ, ऋ ह्रस्व स्वर हैं तथा आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ स्वर हैं।
उच्चारण की दृष्टि से ह्रस्व और दीर्घ का अंतर महत्त्वपूर्ण है। हस्व के स्थान पर दीर्घ अथवा दीर्घ के स्थान पर हस्व का उच्चारण करने तथा लिखने से अर्थ में भेद हो जाता है; जैसे –
ह्रस्व | दीर्घ | ह्रस्व | दीर्घ | ह्रस्व | दीर्घ |
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ |
बन | बान | दिन | दीन | कुल | कूल |
कम | काम | मिल | मील | सुत | सूत्त |
कल | काल | पिटना | पीटना | लुटना | लूटना |
सभी स्वरों का अनुनासिक उच्चारण भी होता है; जैसे – अँ, आँ, इँ, उँ, ऊँ, एँ, ऐ, ओं, औं । जिन स्वरों के ऊपर मात्रा होती है वहाँ अनुनासिक या चंद्रबिंदु (-) के स्थान पर अनुस्वार या बिंदु (1) लगाया जाता है।
2. व्यंजन – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु का प्रवाह रुक कर या घर्षण के साथ निकलता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजन का उच्चारण सदा स्वर की सहायता से होता है; जैसे – क् + अ = क, प् + अ = प
व्यंजनों के भेद
हिंदी में कुल 37 व्यंजन है, जिनमें दो आगत व्यंजन (ज़, फ़) भी शामिल हैं। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
(क)स्पर्श (27), (ख) अंतस्थ (4), (ग) ऊष्म (4) और (घ) आगत (2)|क्ष, त्र, ज्ञ, श्र मूलतः व्यंजन नहीं हैं, वे संयुक्त व्यंजन हैं।
1. स्पर्श व्यंजन – इनका उच्चारण कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत, ओष्ठ स्थान के स्पर्श से होता है।
उच्चारण-स्थानों के अनुसार इनके वर्ग इस प्रकार हैं-
वर्ग | वर्ण | उच्चारण स्थान | वर्ण – नाम |
कवर्ग | क, ख, ग, घ, ङ | कंठ | कंठ्य |
चवर्ग | च, छ, ज, झ, ञ | तालु | तालव्य |
टवर्ग | ट, ठ, ड, ढ, ण, ड, ढ़ | मूर्धा | मुधन्य |
तवर्ग | त, थ, द, ध, न | दाँत | दंत्य |
पवर्ग | प, फ, ब, भ, म | ओष्ठ | ओष्ठ्य |
ङ, ञ, ण, न, म व्यंजन वर्णों का उच्चारण नासिका के साथ-साथ क्रम कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत, ओष्ठ के स्पर्श से होता है। इन्हें नासिक्च व्यंजन भी कहते हैं। डु और ढ़ वर्ण शब्द के आरंभ में नहीं आते, लेकिन मध्य और अंत इनका प्रयोग होता है; जैसे – पड़ना, पीड़ा, बड़ा, पढ़ना, पोढ़ा, बढ़ा।ड -ड़ ढ-ढ़ का अंतर समझना भी महत्त्वपूर्ण है; जैसे- डाकू ,निडर, ,सड़क , कीचड़ और ढक्कन, बुड्ढा, चढ़ाई, बूढ़ा। इन शब्दों में ड, ड, ढ ढ़ वर्णों का प्रयोग हुआ है। इसे समझें।
2.अंतस्थ व्यंजन – अंतस्थ का अर्थ है स्वर और व्यंजन के बीच में (स्थित) से होता है,इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और होंठों के निकट आने किंतु श्वास में रुकावट कम होती है; जैसे – य, र, ल, व इन वणों में ‘य और ‘व’ अर्ध स्वर हैं।
3. ऊष्म व्यंजन- इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न वायु से होता है ;जैसे -श, ष, स, ह । ‘श’ के उच्चारण में जीभ तालु को और ‘स’ के उच्चारण में दाँतों की जड़ को छूती है। ‘ष’ को मूर्धन्य वर्ण कहा जाता है, किंतु इसका उच्चारण अब प्रायः ‘श’ की भाँति होता है। यह वर्ण
संस्कृत के तत्सम शब्दों के लेखन में प्रयुक्त होता है; जैसे – दोष, विषम, पुरुष, संघर्ष।
4. आगत वर्ण – अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी भाषाओं से आए कुछ शब्दों के शुद्ध उच्चारण के लिए हिंदी में ज़-फ़ (नीचे बिंदु) वर्णों का
प्रयोग होता है; जैसे – ज़रा, ज़ोर, ज़ेबरा, फ़ौरन, रफू।
5. संयुक्त व्यंजन- ये दो व्यंजन वर्णों के संयोग से बनते हैं। ये स्वतंत्र व्यंजन नहीं है; जैसे क्ष (क्+ष), त्र (त्+र), ज्ञ (ज्+), श्र (श्+र)।
ये संख्या में चार हैं :
क्ष = क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)
त्र = त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण)
ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन)
श्र = श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण)
व्यंजनों का वर्गीकरण
1. स्वरतंत्री के कंपन के आधार पर
(क) अघोष – इन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता है। क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण) तथा श, ष, स अघोष हैं।
अघोष वर्णों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ परस्पर नहीं मिलतीं। फलतः, वायु, आसानी से निकल जाती है।
(ख) सघोष – इन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है। ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड, ढ, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म (प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ तथा पंचम वर्ण) तथा य, र, ल, व, ह सघोष हैं।
घोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ आपस में मिल जाती हैं और वायु धक्का देते बाहर निकलती है। फलतः झंकृति पैदा होती है।
2. प्राण (श्वास) की मात्रा के आधार पर
(क) अल्प प्राण – इनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है; जैसे – क, ग, ङ, च, ज, ब, ट, ड, डु, ण त, द, न, प, ब, म (प्रत्येक वर्ग के प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ण) तथा य, र, ल, व (अंतस्थ वर्ण)।
(ख) महाप्राण-इनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है; जैसे-ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, ढ़, थ, ध, फ, भ (प्रत्येक वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण) तथा श, ष, स, ह (ऊष्म वर्ण)।
नासिक्य व्यंजन
ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन हैं। ‘ङ’ और ञ का प्रयोग हिंदी में अपने ही वर्ग के व्यंजन के पहले होता है; जैसे- गङ्गा, चञ्चल। ‘ण’, ‘न’, ‘म’ का स्वतंत्र प्रयोग भी होता है; जैसे – प्राण, नयन, काम, मकान। ‘ण’ का प्रयोग केवल तत्सम शब्दों में होता है। कुछ लोग ‘ण’ का अशुद्ध उच्चारण ‘हुँ’ के रूप में करते हैं तथा ‘न’ और ‘ण’ के उच्चारण में भी अंतर नहीं करते। किंतु ‘न’ और ‘ण’ के अंतर को अच्छी तरह समझना चाहिए; जैसे बान (आदत), बाण (तीर)।
व्यंजन गुच्छ
उच्चारण और लेखन की दृष्टि से व्यंजन गुच्छ का विशेष महत्त्व है। व्यंजन गुच्छों में दो या दो से अधिक व्यंजनों का संयोग होता है। उदाहरण के लिए, पक्का, मक्खन, कष्ट, प्यास, स्वास्थ्य आदि। इन्हें संयुक्त व्यंजन भी कहते हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र परंपरा प्राप्त संयुक्त व्यंजन हैं। उनमें वर्णों के रूप बदल गए हैं और नए रूप निश्चित हो गए हैं। इसी कारण उन्हें वर्णमाला में शामिल कर लिया गया है। नीचे कुछ ऐसे शब्द दिए गए हैं, जिनमें व्यंजन गुच्छ हैं। इन शब्दों में विभिन्न व्यंजनों का संयोग किस रूप में हुआ है, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है
1. संयुक्त व्यंजनों (क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) का स्वतंत्र प्रयोग
अक्षर | आज्ञा |
साक्षात् | ज्ञान |
क्षत्रिय | ज्ञापन |
स्वतंत्र | श्रम |
त्रास | श्रद्धा |
त्रिभुवन | श्रेष्ठ |
प्रसन्न | उद्देश्य |
अव्वल | खद्दर |
कच्चा | अड्डा |
ऊल्लू | पत्ता |
पक्का | चप्पल |
सज्जन | दिग्गज |
3. प्रथम अल्पप्राण और द्वितीय महाप्राण व्यंजन का संयुक्त रूप
उद्धार | आच्छादन |
प्रसिद्ध | स्वच्छंद |
गट्ठर | पत्थर |
मुट्ठी | जत्था |
मक्खन | पद्धति |
1. अन्य उदाहरण
अनिष्ट | अनुष्ठान | दुर्गा | प्रार्थना |
अन्वेषण | अधर्म | दृश्य | बहिष्कार |
अपराह्न | उद्भव | द्रष्टव्य | मत्स्य |
गर्जन | उद्यान | द्वंद्व | पद्म |
अवश्य | असंख्य | मध्य | मध्याहून |
अस्थि | काव्य | पद्मिनी | परमार्थ |
कृत्य | आविष्कार | पर्व | रक्त |
आराध्य | क्षम्य | पुण्य | वाक्य |
आशीर्वाद | गृहस्थ | वाष्प | पौष्टिक |
गद्य | प्रत्येक | विद्यार्थी | विद्यालय |
प्रश्न | दर्शन | सत्य | विद्युत् |
प्रतीक्षा | वैषम्य | विप्लव | बाध्य |
दर्पण | व्यक्ति | सामर्थ्य | स्वास्थ्य |
स्पंदन | स्वयं | शुष्क | स्वाध्याय |
व्यर्थ | स्वर्ग | श्रवण | शीर्षासन |
स्वागत | स्वस्थ | श्रीमान | हस्ताक्षर |
श्वेत | संघर्ष | शवाश | हार्दिक |
वह ध्वनि या ध्वनिसमूह जिसका उच्चारण एक साँस या प्रयत्न में होता है ,अक्षर कहलाता है। एक अक्षर में एक स्वर अवश्य होता है। इसीलिए स्वरयुक्त व्यंजन (अर्थात्-वर्ण) को भी अक्षर कहा जाता है; जैसे – क,ग , स ।
एक या अनेक अक्षरों के मेल से जो सार्थक इकाई बनती है, उसे शब्द कहते हैं।
नीचे एक, दो, तीन और चार अक्षरों वाले कुछ शब्द दिए जा रहे हैं-
एक अक्षर वाले शब्द- आ, जो, है, आप, रोग, श्वास।
दो अक्षर वाले शब्द- कमल (क-मल), बोलना (बोल-ना),पत्थर (पत्-थर)।
तीन अक्षर वाले शब्द– बुलाना (बु-ला-ना), सफलता (स-फल-ता)।
चार अक्षर वाले शब्द- आवश्यकता (आ-व-श्यकता)। तीमारदारी (ती-मार-दा-री)।
बलाघात
उच्चारण में किसी अक्षर-विशेष पर श्वास के दबाव के कारण जो बल आ जाता है उसे बलाघात कहते हैं।
वाक्य में पद विशेष के अक्षर पर विशेष बल देने से आशय बदल जाता है; जैसे
(क) पिताजी ने मुझे पाँच रुपए दिए। (किसी और ने नहीं, पिताजी ने ही।)
(ख) पिताजी ने मुझे पाँच रुपए दिए। (किसी और को नहीं, मुझे ही।)
(ग) पिताजी ने मुझे पाँच रुपए दिए। (पिताजी ने पाँच रुपए दिए हैं, अधिक या कम नहीं।)
उपर्युक्त वाक्यों के बलाघात वाले (मोटे छपे) शब्दों में भी बलाघात अक्षर पर ही है; जैसे
(क) पिताजी (‘ता’ पर बलाघात)
(ख) मुझे (‘झे’ पर बलाघात)
(ग) पाँच (‘पाँ’ पर बलाघात)
संगम
उच्चारण करते समय यह भी ध्यान रखा जाता है कि किन शब्दों को प्रवाह में एक साथ पढ़ना है और किनके बीच में हलका-सा विराम देना है। इसी विराम के स्थान को संगम या संहिता कहते हैं। जैसे-
(क) पंकज के पिता का रण में देहांत हो गया (का + रण)।
इसी कारण वह आज नहीं आए (कारण)।
(ख) वह रेतीला मैदान जल सा दिखाई देता है (जल + सा)।
आज हमारे विद्यालय में जलसा है। (जलसा)।
अनुतान
बोलने में भावों के अनुसार स्वर का जो उतार-चढ़ाव, आरोह-अवरोह होता है, उसे अनुतान कहते हैं। सामान्य कथन, प्रश्न और आश्चर्य के भावों को व्यक्त करने के लिए तीन प्रकार के अनुतान का प्रयोग होगा; जैसे –
1. सामान्य कथन- अच्छा। (अनुतान निम्नोन्मुखी है।)
2. प्रश्न अच्छा?- अच्छा ? (अनुतान ऊोन्मुखी है।)
3. आश्चर्य – अच्छा! (अनुतान अंत में सीधा रहता है।)
उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ और उनमें सुधार
शुद्ध भाषा बोलने और लिखने में शुद्ध उच्चारण का विशेष महत्त्व रहता है। अतः शुद्ध उच्चारण पर अधिक बल देने की आवश्यकता है। कई बार अपनी बोली या मातृभाषा के प्रभाव के कारण या शब्दों के स्वरूप का ठीक-ठीक ज्ञान न होने के कारण उच्चारण में अशुद्धियाँ हो जाती हैं। इन अशुद्धियों से वर्तनी में भी अशुद्धियाँ आ जाती हैं। अतः इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
नीचे कुछ शब्दों के उदाहरण दिए जा रहे हैं जिनके उच्चारण में प्रायः अशुद्धियाँ होती हैं। इनके शुद्ध रूप भी साथ दिए जा रहे हैं।
1. अ के स्थान पर आ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
अधीन | आधीन |
बरात | बारात |
2. आ के स्थान पर अ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
आधार | अधार |
आज़ाद | अज़ाद |
सामाजिक | समाजिक |
दारोगा | दरोगा |
3. इ के स्थान पर ई का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
मुनि | मुनी |
व्यक्ति | व्यक्ती |
कवि | कवी |
4. ई के स्थान पर इ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
बीमारी | बिमारी |
आशीर्वाद | आशिर्वाद |
दीपावली | दिपावली |
नीरोग | निरोग |
श्रीमती | श्रीमति |
5. उ के स्थान पर ऊ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
साधु | साधू |
प्रभु | प्रभू |
वस्तु | वस्तू |
गुरु | गुरू |
6. ऐ के स्थान पर अइ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
पैसा | पइसा |
ऐसा | अइसा |
जैसा | जइसा |
टिप्पणी : ‘य’ से पहले ‘ऐ’ का उच्चारण ‘अह’ होता है; जैसे – भैया (भइया), तैयार (तइयार), कन्हैया (कन्हइया)।
7. औ के स्थान पर अउ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
औरत | अउरत |
कौन | कउन |
नौकर | नउकर |
टिप्पणी : ‘व’ से पहले ‘औ’ का उच्चारण ‘अउ’ होता है; जैसे – कौवा (कउवा), चौवन (चउवन), हौवा (हउवा)।
8. औ के स्थान पर ओ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
मौन | मोन |
औरत | ओरत |
नौकर | नोकर |
9. न के स्थान पर ण का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
खाना | खाणा |
रानी | राणी |
फागुन | फागुण |
10. ण के स्थान पर न का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
वीणा | वीना |
दर्पण | दर्पन |
प्रणाम | प्रनाम |
11. व के स्थान पर ब का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
वंदना | बंदना |
वसंत | बसंत |
वाणी | बाणी |
12. श के स्थान पर स का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
आशा | आसा |
शंकर | संकर |
अशोक | असोक |
13. स के स्थान पर श का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
संकट | शंकट |
प्रसाद | प्रशाद |
नमस्कार | नमश्कार |
वसिष्ठ | वशिष्ठ |
14. य के स्थान पर ज का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
यज्ञ | जग्य |
यात्रा | जात्रा |
यश | जस |
15. क्ष के स्थान पर छ का प्रयोग
शुद्ध | अशुद्ध |
क्षमा | छमा |
लक्ष्मण | लछमन |
नक्षत्र | नछत्र |
शुद्ध | अशुद्ध |
स्कूल | इस्कूल |
स्नान | अस्नान |
स्नेह | सनेह |
स्पष्ट | अस्पष्ट |
17. व्यंजन गुच्छ में मध्य और अंत्य में स्वर का आगम
शुद्ध | अशुद्ध |
धर्म | धरम |
राजेंद्र | राजेंदर |
सुरेंद्र | सुरेंदर |